Tuesday, July 16, 2019

कभी खामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे

' ये क्या लिख भेजा ?'

' आपने क्या माँगा था?' 

'यात्रा वृत्तांत के लिए कहा था।'

'हम्म '

' हम्म नहीं। यात्रा वृत्तांत भेजिए।'

' इस बार कहानी चला लीजिए।'

'बिलकुल नहीं।'

'लेकिन सभी के जीवन में हर दिन जो एक नई कहानी खुद ब खुद बन जाती है। उसका क्या। '

'बेकार बातें न करें। यात्रा वृत्तांत भेजिए ,मैं कोम्प्रोमाईज़ नहीं करता।'

'औरत करती है हरदम, कोम्प्रोमाईज़, समझौता। औरत का जीवन, बाहर -भीतर सब तरफ कोम्प्रोमाईज़।'

'फिर शुरू। वही बेढंगा राग। वही फ़लसफ़ा, हुंह। ठीक है इस बार कोम्प्रोमाईज़ करता हूँ। कहानी ठीक है। '

'हम्म...'