Friday, April 10, 2020

नज़रिया

"एक चोर, एक पियक्कड़ और एक अकर्मण्य लेकिन एक अत्यंत बढ़िया आदमी।" एक सत्रह वर्षीया लड़की ने अपने मित्र का परिचय गोर्की से इन शब्दों में कराया। 

गोर्की ने इसे उस सत्रह वर्षीया लड़की की प्रतिभा कहा। 

समस्त बुराईयों के बावजूद किसी में अच्छाई देख पाना वाकई प्रतिभा है। अमूमन ऐसा होता नहीं है। इसीलिए यह बात और भी ज्यादा मायने रखती है। हम सभी एक इंसान को अपनी -अपनी दृष्टि और सोच के अनुसार भिन्न -भिन्न नज़रिये से देखतें हैं। किसी के प्रति सोच बदलते ही नज़रिया बदल जाता है और नज़रिया बदलते ही सोच। 

दॉस्तोएवस्की के कई असफल प्रेम की उनकी प्रेमिकाओं ने, उनमें अलग -अलग अवगुण देखे थे। किसी ने कहा - वो पाशविक थे, तो किसी के अनुसार वो ईर्ष्यालु और शक्की। किसी ने उनमें जुंआरी देखा तो किसी ने अपनी चाहना के लिए प्रेम का ढोंग करता हुआ अवसरवादी भी कह दिया था। शायद इसलिए वो सभी असफल प्रेम की भागीदार बनी। ऐसा नहीं है कि समानताएं और एक जैसे विचार ही दोस्ती के लिए जरूरी हैं। विभिन्नताएं भी प्रेम पैदा कर सकती हैं। 

अन्ना ग्रिगोरीव्ना और दॉस्तोएवस्की के बहुत से बेमेल विचारों के बावजूद भी वे उनके साथ उनकी मृत्यू १८८१ में, ज़िंदगी के करीब तेरह वर्ष तक उनकी पत्नी बन कर रहीं। उसने उन्हें उनकी सभी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ स्वीकारा था। सही मायने में उनकी ज़िंदगी थोड़ा बहुत स्थिर भी उसी के बाद से हुई थी। 

अब जो है सो है। जो नहीं है वो भी है। इसी होने और नहीं होने में ही छिपा है जीवन का असली राज और तमाम खुशियां। सिर्फ कुछ खट्टी -मीठी यादें भी बहुत होती हैं प्रसन्न रहने के लिए। बस एक नज़र चाहिए।