मुझे खशबू से खूब-खूब लगाव है। खाने को मिले न मिले लेकिन मेरे पास इत्रों की भरमार होती है। हमेशा महकते रहोगे तो चहकते रहोगे। मेरा फ़लसफ़ा है। अमूमन मैं लिफ्ट का प्रयोग करना पसंद नहीं करती। सीढ़ियों से चढ़ने -उतरने के बहाने रोज की वर्जिश में थोड़ा इज़ाफ़ा हो जाता है। किन्तु कभी यदि लिफ्ट का प्रयोग करना पड़े तो आनंद आ जाता है। हर सुबह सभी महकते -चहकते अपने -अपने काम की तरफ दौड़ रहे होते हैं।
लड़कियां, महिलाएं भीनी -भीनी परफ्यूम, डिओ या सौन्दर्य प्रसाधनों की सुगंध से लिफ्ट को महकाये रखतीं हैं। भोरे -भोरे तो बालक और पुरुष भी आफ्टर शेव, आँवला, केओकार्पिन आदि मह्कव्वा तेल से या टैलकम पावडर का छिड़काव करके प्रसन्न दीखते हैं। कभी किसी बालक से पूछ देती हूँ। " नाइस फ्रेगरेंस .. कौन सी है ?" फिर उनके चेहरे पर शर्मीली खुशी का रंग चढ़ते देखती हूँ। कुछ अति प्रसन्न होकर तुरंत उत्तर दे देते हैं। ' पार्क एवेन्यू, आरमानी, केल्विन क्लेन आदि.. कुछ ऐसे नाम सुनकर ज्ञानवर्धन हो जाता है।
शाम को सभी काम से लौटते हैं। अब लिफ्ट की आबोहवा कुछ और तरह की होती है। महिलाएं सुबह की उनके वस्त्रों में बची -कुची खुशबू में रसोई के लिए लाती फल, सब्जियों और परेशानियों की महक ओढ़ लेती हैं। ' घर पर क्या हो रहा होगा? क्या खाना बनेगा? चुन्नू -मुन्नू , उनके बापू, अम्मा , काम वाली...' उनकी जान को टोकरा भर परेशानियां। उनकी दुखी शक्ल देख कर पूछने पर मुझे अक्सर यही जवाब मिलते हैं। " क्या बताऊँ मिसिस शर्मा....ज़िंदगी... "
थके -हारे से भद्र पुरुष टाइप पुरुष भी यदा -कदा कोई बाजार के सामान का थैला ले कर आते हैं। किन्तु उनके वस्त्रों से सुबह की सारी महक उड़ चुकी होती है। बस पसीने की बू रह -रह कर लिफ्ट ही हवा में उनकी उपस्थिति का बोध कराती रहती है। इसलिए शाम को तो लिफ्ट को हर हाल में एक बिग नो...
बहरहाल, बालिकाएं और बालक शाम तक भी महकते हैं। कैसे ? " वो हमारे पर्स में, बैग में, गाड़ी में स्प्रे रखे होते हैं। यू नो..थ्री -फोर आवर्स के बाद फिर से स्प्रे करके फ्रेशन अप करते रहना चाहिए।" राज की बात...
सभी महकते -चहकते रहें... दुआ...