Thursday, May 12, 2016

वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई न थी

पिछले सप्ताह एक स्नेह भरा, ममतापूर्ण आवाज वाला फोन आया। उन्होंने बिना किसी भूमिका के सीधा -सपाट सवाल दाग दिया। 

"महिलाओं पर अंक निकाल रही हूँ। एक कहानी भेज दोगी?"

"जी भेज दूंगी। कथ्य क्या हो?"

"पति -पत्नी के रिश्ते पर लिख भेजो।"

"जी"

"झूठ मत लिखना। सच्ची का रिश्ता, जैसा चलता आया है और चल रहा है। सर्वे कहता है संसार में भारतीय महिलाएं सब से ज्यादा अवसादित महिलाएं हैं। वही बताओ दुनिया को..क्यों हैं न ऐसा?"

"ओहो तो आप को खतरनाक टाईप की कहानी चाहिए।"

"हाँ...बिलकुल।" वह ठठाकर हंस दीं। 

"है हिम्मत, निडर होकर लिख सकोगी? सच्चाई?"

"कैसे होगा? मैं भुक्तभोगी नहीं, अनुभवहीन, कहानी में पंच कैसे आएगा?"

"बेकार बात..अपने आस-पास देखती नहीं हो क्या? दुनिया में क्या चल रहा है?" एक जबरदस्त घुड़की मिली। 

"..... " बचपन से आज तक मुझे कभी किसी ने घुड़का नहीं। अब इस उम्र में...? खुशी जैसी हुई। उन पर प्यार जैसा भी आने लगा। जीवन की कैसी विडम्बना है। कई रिश्ते सँभालने के बावजूद भी इंसान जरा सा अपनापन जताए जाने पर कैसा भावुक हो जाता है। 

"क्या हुआ...चुप क्यों हो गईं हो? लिखो...खतरनाक कहानी। फिर फोन करूंगी।"

सोचा कैसे लिखूंगी? माना प्रकाशित हो गई तो फिर मुझे फांसी की सजा तय है। और बचाने वाला कोई आएगा नहीं। फिर भी सेमि खतरनाक जैसी लिख दूंगी। कोई नी..ज़िंदगी हर कदम एक नई जंग है।  

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