Tuesday, December 9, 2014

ये वादियां ये हवाएं बुला रहीं हैं तुम्हें


रास्तों पर चलते हुए कितना कुछ साथ हो लेता है। हमसफ़र बन कर, साथी बन कर। हर सफर के बाद किसी पहाड़, नदी, पेड़, फूल, हवा, आकाश, चाँद, तारे, चिड़ियाँ, बारिश, गांव, शहर, कस्बा आदि। इन तमाम साथियों की यादें, मुलाकातें हमारे ज़हन में हमेशा बनी रह जातीं हैं। किसी गांव, शहर में क्या हुआ था ? किसी नदी किनारे या किसी पहाड़ की चोटी पर, किसी पेड़ के नीचे या फिर गुलाबी शामों को ढलते सूरज के साथ, दिन भर नदी के कल -कल और झींगुरों के प्रलाप के साथ, कोई चांदनी रात में या फिर रात के सन्नाटे में जुगनू की चमक के साथ। इन सभी से मिला हुआ सुकून हमारी यादों में नर्गिस सा महकता रहता है। 

सोचती हूँ इन रास्तों के दिल में मुसाफिरों को लेकर क्या चलता होगा ? शायद कहते होंगे।  

"तुम चलते रहो इन रास्तों पर......आगे बढ़ते रहो......आज तुम चलो, कल तुम्हारे कोई और साथी चलेंगे......फिर कोई और……हम तुम्हारे साथ बने रहेंगे।" 

मुसाफिर थक जातें हैं परन्तु ये रास्ते कभी नहीं थकते। साथ देते चले आ रहें हैं युग -युगांतर से। 

हम इन्हें दे पाते हैं। सिर्फ कुछ यादें, कुछ शब्द और गुनगुनाते हुए बहुत से गीत........ 



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