Friday, November 14, 2014

खामोश सा अफ़साना


जिस दिन से समझ आने लगे 
खामोशियों की भाषा 
उस दिन से विचार बन जाते हैं 
हर पल के अटूट साथी 
उग आते हैं उसके पंख 
और भरने लगते हैं वे 
अपनी स्वछंद उड़ान 

शब्दों भरे विस्तृत आकाश में 
कभी उतर जातें हैं चाँद पर 
और करने लगते हैं उससे 
आत्मीयता से भरी रूमानी बातें 

सर्द रातों की ओस में 
भीग जाते हैं कभी 
और महकने लगते हैं 
सीलन भरी सुवास से 

शब्द बनकर बिखर जाते हैं तब 
कागज़ के कोरे पन्नों पर और 
ढल जाते हैं खामोशी से भरी हुई 
एक कसकती हुई नज़्म में 

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...