Wednesday, April 17, 2013

जहाँ गम भी न हों आंसू भी न हों


अक्सर सुनते हैं.....औरतों का सम्मान करो, औरतों का आदर करो, उनकी रक्षा करो, उनके हित के लिए ये करो , वो करो, उनको  ........औरतें बेहद खुश सोच कर कितनी चिंता है सभी को। फिर बैठती है सब्र से हाथ में हाथ रखे, आएगा कभी कोई तारन हार और तब उनके सारे दुःख दूर हो जायेंगे।

वैसे ये बात कुछ विशेष वर्गों के लिए  है ,  केवल पुरुषों के लिए ही नहीं है  ....एक बड़ा पुरुष वर्ग आदरणीय भी है ...या फिर मुझे दीखते, मिलते ही वो लोग हैं। 

फिर भी यदि घर के बाहर अभद्र पुरुषों का आतंक है तो घर के अन्दर औरतों का भी कुछ कम नहीं है ....कई रूपों में औरतें भी औरतों के प्रति कम जुल्मी नहीं हैं। बहरहाल औरतें घर- बाहर तकलीफ में हैं ये बात भी उतनी ही सच है। एक सर्वे में पढ़ा था ....भारतीय महिलाएं विश्व में सबसे ज्यादा अवसादित और कुंठित होती हैं। दुर्भाग्य। 

सच्चाई देखें तो कहाँ क्या रुक गया? कहाँ क्या कम हुआ? कहाँ तक रक्षा हुई? पिछले कई वर्षों से अब तक का लेखा-जोखा ........क्या???  

अच्छा हो औरतें अपनी रक्षा स्वयं करने की हिम्मत रखें .....अपने आप को सशक्त खुद ही बनायें, अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास को बढ़ाएं .....समाज अपना काम करे ...परन्तु वो भी कमस - कम अपनी रक्षा और सम्मान तो करें। 

( आज एक उच्च पद पर कार्यरत महिला मित्र की हालत से आहत होकर सोचा ....जब इतने उच्च शिक्षित, साधन संपन्न और समझदार अपने लिए अपने ही घर में नहीं लड़ पा रहें हैं तो बाकी महिलाओं का क्या ? उससे भी कह आयी हूँ , जब तुम जैसी औरतें कुछ नहीं कर पा रही हो तो  .....दूसरों को अपना दुखड़ा सुनाते रहो , सब मिलकर रोओ ..खूब रॊओ ....दिल हल्का हो जायेगा ...... और हाँ ...ऑंखें भी सुन्दर हो जायेगी तुम सभी की .... 
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