"इस पुस्तक का नाम मैंने 'गुप्त भारत की खोज' (A search in secret India) इसलिए रखा है कि यह उस भारत की कथा है जो हज़ारों वर्ष से परखने वालों की आंखों से ओझल रहा है, जो संसार से इतना अलग और एकांत रहा है कि आज उसके बचे -खुचे चिन्ह ही रह गए हैं और उनके शीघ्र मिट जाने की संभावना है।" पॉल ब्रंटन
रफायल हर्स्ट (1898 - 1981) ब्रिटिश सैनिक, पत्रकार व लेखक रहे हैं। यह पुस्तक उन्होंने 'पॉल ब्रंटन' के छद्म नाम से लिखी है। 1930 से भारत की तीव्र ग्रीष्म, लू, बरसात और कई कष्टों से आत्मसात होते हुए साधु, संत, जादूगर, चमत्कारों, ज्योतिष शास्त्र, योग, अध्यात्म आदि की खोज में पश्चिम से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम नाप दिए थे। अंत में उनकी खोज, जिज्ञासा और ज्ञान की प्यास, दक्षिण के -"Silence is truth, silence is bliss, silence is peace. And hence silence is the self " कहने वाले रमण महर्षि के पास पहुंच कर तृप्त हुई।
यात्रा के दौरान वे अंध -विश्वास से पगी हुई मूर्ख प्रथाओं से भी गुजरे। इस तरह के कई खट्टे -मीठे, रोमांचकारी, अद्भुत, अविश्वसनीय, आलौकिक, चमत्कारी आदि विलक्षण अनुभवों को उन्होंने 1934 में पुस्तक रूप में संजो दिया। तब से इस अति विख्यात, बैस्टसैलर पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद होता रहा है। आज के पाठकों को उस वक्त के भारत का अद्भुत वर्णन पढ़ कर आश्चर्य मिश्रित रोमांच होना स्वभाविक है।
वे कई तरह की योग विद्याओं में, योग में, अध्यात्म में, स्वयं की खोज, सत्य की खोज आदि में रत योगियों, संतों, साधुओं, फकीरों से रूबरू होते रहे। वे ज्योतिषों, जादूगरों आदि के संपर्क में भी आते रहे। इस खोज यात्रा में उन्हें कहीं मायूसी मिली तो कहीं हर्ष और चमत्कार के दर्शन हुए। हर तरफ से वे अनुभवों को समेटते रहे। जहां तक जितना हो सके वे अपनी शंकाओं का निराकरण करते रहे। यह ज्ञान की तृप्त न होने वाली वह प्यासी गंगा थी जो भारत देश में उन्हें इधर -उधर भटकाते हुए अपने साथ बहा लिए जा रही थी।
मद्रास में ब्रह्म स्वामी से हुआ संवाद - "तुम पश्चिमी लोग सदैव सक्रिय रहने पर बहुत जोर देते हो। पर क्या आराम तिरस्कार करने योग्य वस्तु है? शान्त और प्रसन्न नाड़ियों का कोई महत्त्व नहीं? शांति और आराम योगाभ्यास के श्रीगणेश हैं। सारी दुनिया को इसकी आवश्यकता है।" लेखक योग और अध्यात्म के इसी सागर में डुबकी लगाने के लिए भारत की तरफ आकर्षित हुए थे।
बनारस, काशी, विश्वनाथ पुरी कभी बेहद संपन्न था। कभी मृत्युपरांत साक्षात् शिव धाम पहुंचने की तीव्र इच्छा रखने वाले अपने जीवन के अंतिम दिनों को व्यतीत करके मोक्ष प्राप्त करने यहाँ चले आते थे। उसी बनारस का तिक्त एवं करुण हश्र देख कर लेखक कहने को बाध्य हो गए - "बनारस नाराज न होना, यदि मैं कहूं कि चाहे तुम हिन्दू -संस्कृति का केंद्र भले ही रहो परन्तु अनात्मवादी गोरों से कुछ तो कृपा करके सीख लो और स्वास्थ्य विज्ञान की आग में अपनी पवित्रता को थोड़ा सा तपा लो।" दुर्भाग्य से हमारे भारत देश के कई स्थानों का आज भी यही हाल है। हमारे लगातार प्रयासों से कभी तो स्वच्छ भारत का ये सपना साकार होगा।
अति रोचक और ज्ञान चक्षु खोलते हुए उदाहरणों से भरपूर यह पुस्तक अपने आप को रवानगी एवं तन्मयता से पढ़ने को मजबूर करती है। किसी पुस्तक के अति लोकप्रिय होने का यह भी एक कारण होता है।
आंग्ल होने के बावजूद पॉल ब्रंटन इस पुस्तक में अपने जिए हुए के साथ जिस शिद्दत से पाठकों को लिए चले हैं, जिस लुभावनी और हैरानी भरी उत्सुक दृष्टि से भारत देश के दर्शन करवाए हैं उस के लिए, शब्दों के अभाव में -
तुमने अद्वितीय, अविश्वसनीय, अलौकिक भारत के दर्शन करवाए, तुम कमाल हो प्रिय लेखक।