Friday, February 14, 2020

ढाई आखर प्रेम का - प्रेमोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं

 
वो हमसफ़र था मगर उससे हमनवाई न थी      
   (नसीब तुराबी)

विसंगतियां हर तरफ हैं इसलिए संसार अपने आप में सहमा, सकुचाया, अनमना अजीब से अकेलेपन से ग्रस्त है। भयावह स्थिति देखने को मिलती है सार्वजानिक स्थानों में, मेट्रो में, पार्क में, सिनेमा हॉल में, सोशल साइट्स पर। इंसान कस्तूरी मृग की तरह खुशियों सी महकती कस्तूरी यहाँ -वहां ढूंढता -फिरता है। टेलीविजन देखना, संगीत सुनना, फ़िल्में देखना, मॉल में घंटों व्यतीत करना जरुरत कम किन्तु अकेलापन भरने के विकल्प ज्यादा बन गए हैं। लोग अपने मोबाईल में, लैपटॉप में, किताबों में अपने अकेलेपन को छिपाये फिरतें हैं। यही उनके मन बहलाने के और उनके अकेलेपन से निजात दिलवाने के साथी रह गए हैं। यह देख कर 'ढाई आखर प्रेम का' सिखाने वाले कबीर अपने आप को ठगा हुआ महसूस करते होंगे। 

जिनको अपने अकेलेपन से निकलना नहीं आता वे अवसादित होने लगते हैं, शिकायतों से भर जाते हैं। "मुझे पूछा नहीं, मेरे से बात नहीं की, फोन नहीं किया, मेरा हाल नहीं जाना, मुझे बताया नहीं, मुझसे क्यों नहीं पूछा, मुझसे मिले नहीं इत्यादि। पहल कौन करें? आज इंसान को इंसान से बात करने के लिए, मिलने के लिए, फोन करने के लिए सोचना पड़ता है। कहीं व्यस्त हुआ तो? सो रहा हो तो? उसे ठीक नहीं लगा तो? किसी आवश्यक कार्य में लगा हुआ हो तो? घरवालों, बच्चों के साथ सुख मय क्षणों में हो तो? आदि। यही 'तो' उन्हें उलझनों से भर देता है। न हम दूसरों से बात करने की पहल करते हैं और न दूसरा हमसे। ऐसे में अकेलापन वह अमावस की रात जिसकी सहर नहीं। 

अपनी इन तमाम समस्याओं के समाधान हमें स्वयं ही तलाशने होंगे। अपने अकेलेपन को दूर करने के नायाब तरीके इज़ाद करने होंगे। अब करते यूँ हैं कि अपने आप से प्रेम करके देखते हैं, अपने, अपनों से प्रेम करते हैं। व्हाट्सअप और फेसबुक जैसे तमाम सोशयल साइट्स पर अकेलापन बाँटने से अच्छा स्वयं में प्रसन्न रहना सीख लेते हैं। कभी बेझिझक मित्रों से फोन कर लेते हैं, मिले, बैठे, बतियाएं, घूमें, बारिश में भीगें, धूप में फिरें, आकाश निहारें, खूब चलें, अवसर मिलते ही पार्क में टहल आएं, जो मन में आये वो कर लेते हैं। अपरिचित लोगों से बात करके भी देख लेते हैं। हर वो काम कर गुजरते हैं जिसे करने में हमें संकोच होता है, घबराहट होती है और डर लगता है। अंततः अपने आपको खुश रखना हमारी स्वयं की जिम्मेदारी है। इसके लिए हम दूसरे से उम्मीद क्यों रखें भला।   

गीतकार ने अकेलेपन को जिंदादिली से जीने वालों के लिए ही ये नज़्म लिखी है। "हम भी अकेले तुम भी अकेले / मजा आ रहा है / कसम से " 

वे जो प्रेम करना जानते हैं, स्वयं से, दूसरों से. देश से और वे जो इस फन से अपरिचित, अनजान, अछूते बने रह कर कटुताएं, दुर्भावनाएं, नकारात्मकता फैलाने की कोशिश करते रहतें हैं उन सभी के जीवन में ढेर प्रेम बरसे, घनघोर सुकून बरसे। सभी खुश रहें, आबाद रहें। दुआ !!