Tuesday, November 15, 2016

चांदनी रात में एक बार तुझे देखा है


कल आकाश ज़्यादा स्याह था या चाँद ज़्यादा श्वेत 
अपने अपने रूप से गर्वित दोनों प्रसन्न थे 
अपनी गहराइयों और खामोशी के साथ 
आकाश महोब्बत से सराबोर 
चाँद इश्क़ में गरिफ्तार 
पूरक एक दूसरे के 
आकंठ डूबे प्रेम में 
तुझ बिन मैं क्या 
मुझ बिन तू क्या 
यही है उनकी कविता का स्वर 
उनकी कथा का कथानक 
दुनिया को भूल कर 
एक दूजे के पहलू में समाये 
मदहोश दीवानों से 
दुनिया ने जी भर सराहा 
इश्क़ और महोब्बत की 
इस अनूठी दास्तां को 
उस स्याह आकाश को 
उस संदली चाँद को 
जो जानतें हैं महोब्बत करना 
वर्षों से खामोश रह कर