Wednesday, May 4, 2016

दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन


जब भी फुर्सत मिलती है 
चंद घड़ियों की 
न जाने कितने ही ख़याल 
अंगड़ाई लेने लगते हैं 
मन झूमने लगता है 
सोच के सागर हिलोरे लेने लगतें हैं 
अनेक उलझे-सुलझे, सवाल -जवाब  
ढलने लगतें हैं नज़्मों में 
सूरज के ढलते ही 
यादों का कारवां लिए 
शाम चली आती है 
तब मुस्करा देता है चाँद और 
दबे पैर चले आते हो तुम भी 
ख्यालों में ....