Thursday, June 25, 2020

रुड़की ( उत्तराखंड ) के बदहाल शेर

हिमालय, शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी पर पर बसा रुड़की, हरिद्वार जिले का खूबसूरत शहर है। उस पहले इंजीनिअरिंग कॉलेज के लिए मशहूर है जिसकी स्थापना 1847 में यहाँ पर हुई थी इसकी गंगनहर बनने का समय ब्रिटिश काल में सन 1842 - 1854 के बीच रहा। ये 560 किलोमीटर लंबी नहर रुड़की से कानपुर तक बनी।
उसी दौरान आंग्ल आर्मी अफ़सर कर्नल पी टी कोटले ने यहाँ पर पांच शेरो को बनवाया था। सर्वप्रथम लंदन की तर्ज पर पठानपुरा में एक शेर बनवाया गया। उसके बाद एक जोड़ी रुड़की गंगनहर पर बनी और दूसरी जोड़ी मेहबड़ गांव वाली गंगनहर के दोनों छोरों पर बनवाई गई। ये खतरे की निशानदेही के द्योतक थे। ये शेर उत्तर -प्रदेश सिंचाई विभाग के अंतर्गत आते हैं और उन्ही की देख -रेख से पोषित होते हैं। अफ़सोस कि सिंचाई विभाग को शायद इन करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराने शेरों का मूल्यांकन करना नहीं आया। इतनी प्राचीन धरोहर को कैसे संभाला जाना चाहिए वे बिलकुल नहीं समझे। कभी -कभार इन पर रंग -रोगन करा दिया जाता है। जो एक ही बारिश में धुल कर बदरंग हो जातें हैं। आज इनके इर्द -गिर्द, झाड़ -झंकाड़ और गंदगी देख कर इनकी स्थिति पर बेहद अफ़सोस हुआ। 

ऐसी शानदार सदियों पुरानी धरोहर यदि विदेश में कहीं होती तो इनका सौंदर्यीकरण हो गया होता। ये शेर मुस्कुराते दीखते। इनके इर्द -गिर्द खूबसूरत फूल -पौधें लगा कर वे इसे खूबसूरत पार्क में परिवर्तित कर चुके होते। इन पर टिकट लग जाता और उसी रकम से इनका मेकओवर होता रहता। इस ग़ैर जिम्मेदार रवैये में कोई ज़िम्मेदारी लेने वाला होना चाहिए। सीधी बात है। बेजान हैं तो क्या, इनके चेहरे की तरफ देखते हुए इनकी पीड़ा महसूस की जा सकती है। 
थोड़ी देखभाल और उस समय के मिट्टी, चूना, गारा जिससे भी ये बने थे मजबूत बने थे। इसलिए आज तक ज़िंदा हैं। अन्यथा कब के ये मिट्टी के शेर मिट्टी में मिल गए होते। या फिर ये दहाड़ने वाले होते तब भी नज़ारा कुछ और होता। किंतु ये मूक, लाचार और बेजुबान प्राणी क्या करे, क्या कहे? विनम्रता और शराफ़त का मोल इतना ही है। आज के हालात में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए कभी -कभार सांप की तरह फुफकारना जरूरी होता है। 

यदि सभी अपने -अपने क्षेत्रों का ध्यान रख सकें। तब भी देश का कुछ भला हो जाए। रुड़की वाले अपनी इस धरोहर के लिए कब जागरूक होंगे? क्षुद्र बातों के लिए धरने, आंदोलन होने लगते देर नहीं लगती। इनके लिए कोई आंदोलन क्यूं नहीं करता? क्या उनका सौंदर्य बोध इतना गया -गुजरा हो गया है? उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग का लचर, गैर ज़िम्मेदार सिस्टम। कतई बेकार लोग। 

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