Wednesday, May 7, 2014

शिवदा की जय हो ( लघु कथा 'समाज कल्याण ' पत्रिका के मई अंक २०१४ में प्रकाशित )


गाँव वाले टकटकी लगाए मंच पर खड़े शिवदत्त को ऐसे निहार रहे थे। मानो स्वर्ग से देवदूत अवतरित हुआ हो और अब उनके सारे दुखों का निवारण जरूर हो जाएगा। भोले गाँव वाले हाथ जोड़ते हुए नीचे बैठ गए।

जब पहली बार अपनी तनी हुई गर्दन पर फूल मालाओं को स्वीकारते हुए शिवदा मंच पर चढ़े। माईक सँभालते हुए जोश के साथ बोले -

" मेरे प्यारे भाईयों और बहिनों। आप लोगों की परेशानियाँ मेरी अपनी परेशानियाँ हैं। आप लोग बिलकुल चिंता न करें। हमारे गाँव में भी बिजली आएगी, पानी आएगा। अब हमारा गाँव भी खूब तरक्की करेगा। आप सभी अपना बहुमूल्य वोट मुझे ही दीजिए "

गाँव वासियों ने प्रसन्नता से शिवदा की जय हो ! के हर्षनाद के साथ ही खूब जोर से तालियाँ बजाईं। जिसकी गूँज दूर -दूर तक सुनाई दी। 

चुनाव जीतने के बाद दूसरी बार शिवदा गाँव वालों को धन्यवाद देने के लिए मंच पर फिर चढ़े ओर आनंदित हो कर बोले। 

"प्यारे भाइयों और बहिनों आप सभी के प्रेम और साथ ने मुझे भारी मतों से विजयी बनाया है। अब आप लोग देखना हमारे गाँव में बिजली, पानी सब कुछ आएगा , हम घर -घर बिजली -पानी पहुँचा देंगे। हमारा गाँव खूब तरक्की करेगा "

गाँव वालों ने खुश होते हुए फिर हर्ष के साथ शिवदा की जय -जयकार की और जोर से तालियाँ बजाईं। जिनकी गड़गड़ाहट से आस -पास का सारा वातावरण गूँज उठा। 

तीसरी बार शिवदा मंच पर फिर चढ़े और हो-हो कर हँसते हुए बोले -

"भाइयों और बहिनों देखो हमारे गाँव में बिजली आ गयी है, पानी आ गया है। हमारा गाँव तरक्की कर गया है"  

गाँव वालों ने आश्चर्य से देखा। शिवदत्त सच कह रहे थे। उनका घर रोशनी से जगमगा रहा था और उनके घर के आगे लगा हैंडपंप भी खूब पानी उगल रहा था। 

उन्होंने एक -दूसरे का मुँह देखा। शिवदा की जय!  वाला जयनाद उनके हलक में ही फँस कर रह गया। तालियाँ भी बजी परन्तु उसकी गूँज भी उन के स्वयं के कानों तक ही पहुँच सकी। 



( लघु कथा - समाज कल्याण पत्रिका के मई अंक २०१४  में प्रकाशित )

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